बेवफा मच्छर
पात्र
|
पात्र
|
डेंगू मच्छर
|
पति
|
मलेरिया मच्छर
|
पत्नी
|
वायरस
|
ठेकेदार
|
कीट नाशक
|
अधिकारी
|
सफाई कर्मी की ड्रेस
|
नेता
|
जनता
|
सूत्रधार
|
सूत्रधार
- आज हम यहां बहुत गंभीर समस्या लेकर
आये हैं। समस्या भी किसकी है सुनेंगे तो चक्कर में पड़ जायेंगे। जी हां, हम सब की
जान के दुश्मन मच्छरों की॰॰ !!
मच्छर परेशान हैं।
उन्हे बेवफा कह कर पुकारा जाता है। कहा जाता है वो जिस थाली में खाते हैं उसी में
छेद करते हैं।
अब ये केस आपकी अदालत
यानी जन अदालत में है। निर्णय आपको करना है। समस्या का हल आपको खोजना है। हम तो बस
समस्या से जुड़े कुछ तथ्य रखेंगे बस ॰॰॰।
अपनी बातें रख सूत्रधार घेरे से बाहर चला जाता है।
घेरे में आम जनता से एक आदमी खुजलाता हुआ प्रवेश करता है
जनता
– हिचकिचाते हुए “मोला खुजरी के बिमारी
नो है गा, मच्छर हा चाब दिस तेकर से खुजावत हूं।“ कहते हुए बाहर चला जाता है।
पति पत्नी का घेरे में प्रवेश होता है
पति
– जगह जगह नालियां भरी पड़ी हैं।
चारों ओर गंदगी ही गंदगी फैली पड़ी है। कोई देखने सुनने वाला ही नहीं ॰॰॰ ना जाने
क्या होगा।
पत्नी
– होगा वही जैसा हम चाहेंगे ॰॰॰ तुम
तो जानते हो ना –
“हम सुधरेंगे, नेता सुधरेंगे,
हम बदलेंगे सरकार बदलेगी।“
पति – तुम कहना क्या चाहती
हो ?
पत्नी
- यही कि पहली जवाबदारी हमारी है।
तुमसे कितने बार बोल चुकी हूं कि कूलर का पानी निकाल कर साफ कर दो लेकिन नहीं,
तुमने तो डेंगू मच्छरों को खुला निमंत्रण रख छोड़ा है।
पति
– ठीक समय पर ठीक निशाना लगाना तो कोई
तुमसे सीखे॰॰॰ आज साफ करने के बाद ही मोहल्ले की नालियों व कचरे की सफाई पर निंदा
रस का आनंद लुंगा।
पत्नी – गुड तो लग जाइये॰॰ आज छुट्टी भी है।
पति
- अब मेरी भी सुनो ये जो पॉलिथिन फेंक
देती हो ना नाली में इससे बचा करो॰॰॰ ये ही नालियों को जाम कर देती हैं। रुके पानी
में मच्छर पनपते हैं। ॰॰॰ मलेरिया के मच्छर॰॰॰ हंहंहंहंहं॰॰॰।
पत्नी
– हां॰॰ हां॰॰ बोल लो॰॰ ये भी बोल लो
कि कचरा भी सही जगह जाकर फेंका करो॰॰ जिससे सफाई कर्मी उसे उठाकर ले जाया करें । कभी
देखें हैं रोज कचरा उठाने वालों को आते। भले ही नियमतः उन्हे रोज ड्रेस में आना
चाहिये।
(पति व पत्नी घेरे के बाहर चले जाते हैं। घेरे में आम
जनता से एक आदमी खुजलाता हुआ प्रवेश करता है)
जनता
– हिचकिचाते हुए “मोला खुजरी के बिमारी
नो है गा, मच्छर हा चाब दिस तेकर से खुजावत हूं। ये मच्छर के चाबे खुजरी तब तलक
बंद नहीं होइ जब तक ये अधिकारी मन के पईसा बनाये की खुजरी॰॰॰“ कहते हुए खुजली करता
हुआ बाहर चला जाता है।
एक एक पात्र घेरे में आकर अपना परिचय देने लगते हैं -
डेंगू
मच्छर – (ठहाके लगाते हुए) मैं डेंगू॰॰ मुझे सरकारी अधिकारियों का
भ्रष्टाचार बहुत पसंद है और हां आप सब की लापरवाही तो हमारे लिये सोने पर सुहागा
है।
मलेरिया
– मैं एनिफिलिक्स॰॰॰ मलेरिया की
डिस्ट्रीब्यूटर हूं। धन्यवाद उस भ्रष्टाचार को जिसने मुझे जिंदा रखा हुआ है। साथ
ही जनता का भी बहुत आभार जिन्होने हमें पनपने में खूब सहयोग किया है।
डेंगू
व मलेरिया का मच्छर एक साथ –
हमें बेबफा समझते लोग, हम मच्छर बेवफा नहीं
बेवफा तो हैं वे लोग, जिनने की वफा नहीं
भ्रष्टाचारियों से पूछो, मच्छर क्यों मारे नहीं
कहां गया वह पैसा, मारने खर्च अगर हुआ नहीं
सोचो जरा चुप बैठी जनता, कौन वफादार, कौन नहीं।
वायरस
– मैं वायरस॰॰ मुझे तो सरकारी महकमा
बहुत अच्छा लगता है जो मुझे सज-संवरकर महौल में छाने का पूरा मौका देता है। कभी कभी
सोचता हूं मैं अस्तित्व में नहीं होता अगर जनता का अपार प्रेम नहीं होता।
डेंगू
व मलेरिया मच्छर – एक साथ –
सरकारी महकमें का सिर्फ आभार मान लो।
जनता बैठी है क्रोध में ठीक से जान लो।
वायरस
– सरकारी लोगों को तो रुपया मिलता है
रुपया । उनका कैसे आभार ?? वे तो लानत के पात्र हैं। आभार तो जनता का जिसे सब
दिखते हुए भी कुछ नहीं दिखता है।
कीटनाशक
– मैं बहुत हैरान हुं मुझ जैसे सैनिक के
होते हुए भी मुझे युद्ध के मैदान में डेंगू व मलेरिया मच्छरों से लड़ने के लिये
क्यूं नहीं भेजा जाता है ? क्यों विभिन्न रोगों के वायरसों को पनपने दिया जाता है
?
सफाई
कर्मी की ड्रेस – वाह रे जनता तुझको मेरी
याद क्यों नहीं आती गंदगी व मच्छरों के शिकार बनकर मुझे यहां वहां ढूंडते घूमते हो
पर सफाई कर्मी मुझे पहनकर काम करे क्यूं नहीं कहते हो।
घेरे में आम जनता से एक आदमी खुजलाता हुआ प्रवेश करता
है
जनता
– परेशानी व्यक्त करते हुए “ अब्बड़
परेशानी है का बतांव, हाथ से नाक ला बंद करथों तो मच्छर हा सताते अऊ नाक बंद नहीं
करथों तो बदबू रंग दिखाते॰॰ अब तैं ही बता मोला का करना चाही॰॰” फिर दोनों हाथों
से खुजलाते हुवे संकोच भाव से कहता है “मोला खुजरी के बिमारी नो है गा, मच्छर हा
चाब दिस तेकर से खुजावत हूं।“ कहते हुए बाहर चला जाता है।
ठेकेदार व अधिकारी एक साथ घेरे में आते हैं।
ठेकेदार
– अधिकारी को नोट देते हुए “ये लिजिये
मलेरिया मच्छर का कमीशन, ये डेंगू मच्छर का कमीशन, ये गंदगी व बजबजाती नालियों का
कमीशन”
अधिकारी
– बस इतना ही ?? गंदगी और मच्छरों के हाल
देखकर तुम्हे नहीं लगता की और देना चाहिये॰॰?
ठेकेदार – अगर आप नौकरी में बचे रहे
तो बढ़ा देंगे सर चिंता किस बात की है ॰॰
अधिकारी
– ऐसा नहीं चलेगा। मेरी भ्रष्ट हरकतों को
देखकर तो कोई भी नहीं कह सकता कि नौकरी कब तक चलेगी॰॰!!! जो देना हो अभी डिसाईड
करो।
ठेकेदार
– चलती रहेगी, जरुर चलती रहेगी, बड़े
लोगों को इतनी समझ होती है कि कौन कमाऊ मुर्गी है। आप कमाऊ मुर्गी नहीं होते तो डेंगू
मलेरिया से जनता यूं त्रस्त नहीं होती। कीटनाशक ये कहता नहीं फिरता कि मेरा
इस्तेमाल करो, मेरा उपयोग करो और हां सफाई कर्मियों की ड्रेसें आलमारियों में यूं ही
धूल खाते नहीं पड़ी रहती।
अधिकारी
– इतने से कमिशन से काम नहीं चलेगा॰॰ जनता
को यह नहीं मालूम की तुम कम संख्या में सफाई कर्मी लगाते हो। जनता को यह भी नहीं
मालूम की सफाई कर्मी इसलिये ड्रेसकोड में काम पर नहीं आते क्योंकि उनकी पहचान आसान
हो जायेगी।
देखो लोगो के घर के
सामने की छोटी नाली रोज साफ व बड़ी नालियां हर तीन दिन में साफ करना चाहिये॰॰ बताओ
कितनी नालियां रोज साफ होती हैं? ॰॰कितना पालन होता है इस नियम का।
ठेकेदार
– अब शांत भी हो जाईये ॰॰॰ सब को पता चल
गया तो जो मिल रहा है उससे भी जाते रहेंगे। फिर लोग रोज सफाई मजदूर गिनने लगेंगे,
रोज नालियों में झांकेंगे कि साफ हुई की नहीं। ॰॰॰॰ आप शांत रहें मैं कुछ और कर
दुंगा।
अधिकारी
– नहीं नहीं कुछ से काम नहीं चलेगा॰॰ मैं
तुम्हारा बिल बिना सोचे विचारे ओके करता हूं॰॰ तुम जानते हो ना कि बिल तब तक पास
नहीं किया जाना चाहिये जब तक मोहल्ले के कम से कम 100 नागरिको की राय ना ले
ली जाये, और हां 25 प्रतिशत वरिष्ठ सदस्यों की जिस दिन तुमसे राय लिखाकर
लाने लगोगे ना, मुश्किल हो जायेगी। ॰॰तुम ही बताओ मैंने कभी फीडबैक का ख्याल किया।
कभी क्रास चैक किया। नहीं ना॰॰!
ठेकेदार
– अब बस भी करिये ॰॰॰ लोग सुन रहे हैं ।
मैं कुछ करता हूं ॰॰॰
कहते
हुए ठेकेदार और अधिकारी दोनो घेरे के बाहर चले जाते हैं। घेरे में आम जनता से एक आदमी खुजलाता हुआ
प्रवेश करता है
जनता
– हिचकिचाते हुए “मोला खुजरी के बिमारी
नो है गा, मच्छर हा चाब दिस तेकर से खुजावत हूं। ये मच्छर के चाबे खुजरी तब तलक
बंद नहीं होइ जब तक ये नेता मन के पईसा बनाये की खुजरी॰॰॰“ कहते हुए बाहर चला जाता
है।
ठेकेदार व नेता का प्रवेश होता है।
ठेकेदार – कुछ रुपये देते हुए “ले
लीजिये सर बड़ी मुश्किल से बचा पा रहा हूं।”
नेता
– इतना कम ॰॰! कम से कम मच्छरों के
अनुपात में तो दो। मच्छर बढ़े हैं ॰॰ गंदगी भी भरपूर फैली है॰॰ हम रोज जिल्लत
झेलते आ रहे हैं ॰॰! बस इतना॰॰? ये ना काफी है।
ठेकेदार
– आप अकेले होते तो बात कुछ अलग होती।
यहां तो नीचे से लेकर उपर तक बांटना है। फिर जो जब जब जनता हल्ला मचाये उसके आस-पास
के क्षेत्र की सफाई भी करनी ही पड़ती है।
नेता – ये मच्छर बहुत ही बेवफा होते हैं।
ठेकेदार
– सर ये बात तो उन लोग भी कहते होंगे।
पर एक बात है सर मच्छर आपका अहसान जरुर मानते होंगे। आखिर उनके रक्षक जो ठहरे
आप॰॰॰।
हंसते
हुए दोनो घेरे के बाहर चले जाते हैं।
मच्छरों का प्रवेश घेरे में प्रवेश होता है। वे घेरे
में घूम घूमकर गाना गाते है –
ताकत हमारी गंदगी, हिम्मत हमारी गंदगी
अस्तित्व हमारी गंदगी, हैं भ्रष्ट हमारे रखवाले
हम अडिग हिमालय जैसे छा गये हैं धरती पे
भ्रष्ट हमारे रखवाले नहीं डर किसी जनतंत्र से
काटे हमारे डेंगू होता या फिर मलेरिया
गंदगी हमारी सच्ची साथी फैलाती पीलिया
काटें हैं हम सच्चे मन से बिना किसी भेदभाव के
ठेकेदार और अफसर नही बचें हमारी निगाहों से
ताकत हमारी गंदगी, हिम्मत हमारी गंदगी
अस्तित्व हमारी गंदगी, हैं भ्रष्ट हमारे रखवाले
ठेकेदार और अधिकारी कराहते हुए घेरे में प्रवेश करते
हैं
ठेकेदार – सर मच्छर तो अहसान फरामोश
निकले॰॰ देखो मुझे डेंगु हो गया है।
अधिकारी
– सही कह रहे हो इस कलयुग में किसी पर भी
भरोसा करना बेमानी है। देखो ना मुझे भी मलेरिया ने जकड़ रखा है। ये मच्छर बहुत बेवफा
होते हैं जो उन्हे पनपने का मौका देते हैं उन्हे ही वे डस के चले जाते हैं। आस्तीन
के सांप होते हैं यह।
ठेकेदार
– हंसते हुए ॰॰॰ यही बात तो जनता भी
अपने लिये भी कहती होगी सर॰॰ आज हर
व्यक्ति अपनी जवाबदारियों को लेकर ऐसा ही दोहरा मापदण्ड रखता है। इसीलिये कोई किसी
का अहसान नहीं मानता है।
ठेकेदार व अफसर घेरे के बाहर चले जाते हैं।
घेरे में आम जनता से एक आदमी खुजलाता हुआ प्रवेश करता
है
जनता
– हिचकिचाते हुए “मोला
खुजरी के बिमारी नो है गा, मच्छर हा चाब दिस तेकर से खुजावत हों। ये मच्छर के चाबे
खुजरी तब तलक बंद नहीं होइ जब तक ये नेता मन के पईसा बनाये की खुजरी॰॰॰“ कहते हुए
बाहर चला जाता है।
मच्छरों का प्रवेश होता है वे घेरे में घूम घूम कर एक गीत गाते हैं –
गद्दार कहो या शैतान, हम करते हैं अपना काम
बेवफा नहीं हम मच्छर, ये तमगा तुम्हे सलाम
हम तो चाहते हैं मुक्ति, तुम सब गद्दारी करते हो
हम मच्छरों का भय दिखा, अपना घर भरते हो
मत छोड़ना ऐ जनता इन सफाई के जवाबदारों को
हमें रोकने का बीड़ा उठा, पनपा रहे तुम्हे काटने को
ये गाते गाते मच्छर घेरे के बाहर चले जाते हैं। वहीं कीटनाशक व सफाई कर्मी की ड्रेस
घेरे में प्रवेश करती है।
जान लो ऐ दुनिया वालों मैं बक्सों में बंद हूं
मच्छरों को मारने आया था आज स्वयं मजबूर हूं
मच्छरों, कीटनाशक व सफाई कर्मी ड्रेस की बातें सुनकर
जनता भड़क उठती है और उन्हे मारने दौड़ती है॰॰ घेरे में आकर वह भी गाने लगती है –
बहुत हुआ जुल्म अब ना सहेंगे
स्वच्छता का ध्यान खुद रखेंगे
जागृत हो गये हैं हम जन जन
अब यह लूट बंद करके रहेंगे
एक
ओर गाना चलता रहता है दूसरी ओर जनचेतना फैलाने गये साथी पॉम्पलेट बांटने लगते हैं।
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ समाप्त
लेखक
राजेश बिस्सा
21, सेंट्रल ऐवेन्यू
वेस्ट
चौबे कालोनी रायपुर (छ॰ग॰)
फोन – 9302241000
9753743000